Saturday, 23 September 2017

अमृतसर... तेरे साथ था मैं यहां कल!

अगर कोई ख्वाहिश थी मेरी तेरे साथ कहीं ज़रूर जाने की...तो वो बस अमृतसर जाने की ।
तूने ही सलाह भी दी थी कि चलते हैं...
कोशिश की तुझे मनाने की ताकि ये जो वादा एक क़िस्म का हमने किया था एकदूसरे से वो पूरा कर लें मगर ...वक़्त भी कुछ ऐसा रहा और सोच भी कि शायद यही ठीक है... गए नहीं...

वो होता है ना कि चीजें खुदबखुद होती जाती हैं...मैं गया, और तुझे याद भी किया वहां बैठ के मैंने...
अकेला नहीं था मैं मगर फिर भी था...क्योंकि तुझे अपने साथ सोच कर कुछ और सोचना बस की बात नहीं है मेरे।
चाँद आसमान में कुछ बादलों से घिरा हुआ था...और वो मंदिर का गुम्बद सोने में जड़ा हुआ...पानी की लहरों में हिल हिल कर झिलमिला रहा था। बस मेरी आँखों से देख ले जैसे मैन बयां किया है कुछ इस वक़्त को। गुरबानी जो सूफिया अंदाज़ में लोग गा रहे होते हैं वो इस जगह की खूबसूरती को बरकरार रखने में अहम है।

लाखों लोग होते हैं वहां मो2...मगर जो मुझे महसूस हुआ वो ये कि तू है...और तूने मेरा हाथ ज़ोर से थाम रखा है।
ये ही करना भी था हमें अगर हम एक साथ गए होते तो...और मुझे ये भी मालूम है कि तेरा सर मेरे कंधे पे टिका ज़रूर होता।
मुझे विश्वास नहीं है किसी भगवान या किसी आसमानी सल्तनत में...बस यूं है कि यहां आकर मुझे सुकून मिलता है सिर्फ शांत बैठ जाने में। वो भी इसलिए क्योंकि लोग बड़ी उम्मीद रखते हैं यहां आकर ।

मैं ऐसी जगहों पर सिर्फ तुझे याद कर लिया करता हूं, और अगर आत्माएं होती हैं तो वो बस ये ही एहसास कर पाएंगी कि तेरे बारे में कुछ मन ही मन कुछ कहा है मैंने।

तेरे साथ था मैं यहां कल !

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