Tuesday, 14 March 2017

बस इतना हो . . . के. . .

ख़ामोश था मैं मगर कुछ यूँ हुआ, के तूने जलज़ला सा ला दिया बियाबान में।
इस बियाबान सी ज़िन्दगी को आदत है अब तेरी, बस यूँ हो के...तूझे याद करुँ, और तू सामने हो मेरे।

पर याद तो तब आऐ कि जब तुझे भूल सकूँ मैं, मेरी तो सोच भी तुझसे शुरू और ख़त्म भी तुझपे।

अब और ना तरसा मुझे यूँ ख़बर ना ले कर मेरी, मैं आज हूँ मगर जान ले...के... ये ज़िन्दगी ना हो जाए... ख़त्म सी मुझपे...

बस इतना हो...के...तू हो। बस...

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